विपिन जी आपके अशआर लाजवाब हैं। मेरी मजाल है कि मैं उन पर इस्लाह कर सकूँ। उम्मीद है ऐसे बेहतरीन अशआरों से जल्दी जल्दी नवाजते रहेंगे। आज एक ग़ज़ल पेश करता हूँ। बदकिस्मती से इस के शायर का नाम भूल गया। अगर किसी मित्र को पता हो तो मुझे बताने की ज़हमत उठाएं, जिसके लिए मैं उन का शुक्रगुज़ार रहूंगा।
बदनाम मेरे प्यार का अफ़साना हुआ है
दीवाने भी कहते हैं कि दीवाना हुआ है।
रिश्ता था तभी यो किसी बेदर्द ने तोड़ा
अपना था तभी तो कोई बेगाना हुआ है।
बादल की तरह आ के बरस जाइए इक दिन
दिल आप के होते हुए वीराना हुआ है।
बजते हैं ख़यालों में तेरी याद के घुंघरू
कुछ दिन से मेरा घर भी परीखाना हुआ है।
मौसम ने बनाया है निगाहों को शराबी
जिस फूल को देखूं वही पैमाना हुआ है।
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मक़बूल
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