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Wednesday, January 6, 2010

कुछ दिन से मेरा घर भी परीखाना हुआ है

मकबूलजी
शासर का नाम जो भी हो काम बहुत बड़ा है। आपने अच्छे शेर पढ़वाए आपके हम शुक्रगुजार हैं। खासकर के शेर-

 बजते हैं ख़यालों में तेरी याद के घुंघरू
कुछ दिन से मेरा घर भी परीखाना हुआ है।

मौसम ने बनाया है निगाहों को शराबी
जिस फूल को देखूं वही पैमाना हुआ है।

आप महान हैं। पूरा हिंदुस्तान हैं। आपके आगे हम तो रेगि महफिल की शान हैं। आपके आगे हम तो रेगिस्तान हैं। 
पं. सुरेश नीरव

1 comment:

समय चक्र said...

बजते हैं ख़यालों में तेरी याद के घुंघरू
कुछ दिन से मेरा घर भी परीखाना हुआ है।

bahut badhiya sher..badhai sureshji