कितनी सुहावनी
तो दूसरी ओर महर्षि गौतम ने अपनी धर्म परायाणा ,पति व्रता पत्
शायद हमारी वैदिक संस्कृति में
कि महर्षि गौतम ने तो उन्हें पत्थर होने का शाप दिया था ,ये है हमारी नारियों के प्रति
असीम श्रद्धा भावना ---बेचारी स तयुग की प्रताड़ित नारीक़ो ,शा पित ,परित्यक्ता को तब
मुक्ति नसीब हुई जब त्रेता में राम ने जन्म लिया और वे वहाँ पहुंचे |बड़े मज़े की बात तो ये की अहल्या का कल्याण करनेवाले राम ही
असीम श्रद्धा भावना ---बेचारी स
मुक्ति नसीब हुई जब त्रेता में
सीता को तब वनवास के सम्मान से सुशोभित करते हैं जब वे गर्भि नी होती हैं | हमारे पास अपने बचाव के लिए अनेक हथियार हैं
सो हम कहेंगे कि राम एक आदर्श राजा थे जिन्हें हर हाल में भी नहीं अपनी प्रजा का विश्वास जी तना था ,अवश्य --पर क्या पत्नी प्रजा के समकक्ष भी नहीं
होती और वह प्रजा कैसी जो अपनी महारानी पर ही उगली उठाए क्या त ब अपवित्र
आचरण वालो के लिए राजदंड नहीं थ ा| पत्नी ना हो गयी जागीर हो गई |,धर्म के ठेकेदारों से निपटना मुश्किल है ,
होती और वह प्रजा कैसी जो अपनी
आचरण वालो के लिए राजदंड नहीं थ
क्योंकि वे इसे लीला का करार दे देगे |लक्ष्मण ने मात्र इसलिए अपनी ही पुत्री के सूहाग को उजाड़ने का ठेका ले लि या था
कि उसने इंद्र से विवाह करने से इनकार कर दिया था और उसने अपनी मर्ज़ी से मेघनाद से विवाह रच लिया था कितना सुंदर सम्मान है |
आदर्श महाराज युधिष्ठिर ने जुए जैसी अपवित्र लत में सब कुछ तो हारा हारा अंत में पत्नी को भी दाव पर लगा दिया ,
आदर्श महाराज युधिष्ठिर ने जुए जैसी अपवित्र लत में सब कुछ
उ स समय का बड़ा सुंदर वार्तालाप है द्रोपदि ने पूछा था
कि क्या महाराज ने स्वयं को हराने के बाद मुझे दाव पर लगाया त ो ये उनका अधिकार ही नहीं
बनता, हारा हुआ गुलाम महारानी को दाव पर कैसे लगा सकता है ,पर हमारे नारी का सम्मान करने वाले
उस तथाकथित राज्य में उसकी बात भला सुनता कौन ?महाराज ने पत् नी को दाव पर लगाकर उसका अभूतपू र्वा सम्मान किया था ऐसे किटने ही सम्मानों से हमारा धा र्मिक इतिहास भरा पड़ा है |
मई नही जानती सच या झूठ पर कहा नियाँ ही तो है एक कहानी कहती है कि जब देब गण युद्ध में जालं धर
को परास्त ना कर पाए तो विष्णु ने जाकर उसकी पतिव्रता पत्नी का शील भ्रष्ट कर दिया जिससे पति की शक्ति जाती रही और वह युद्ध में मारा गया हमारे देवता भी समय सापेक्ष रास्ते इख्तियार करते हैं फिर वही बात भगवान तो हर हा ल में भक्तों की रक्षा के लिए उद्धार और उद्धारक कार्य करता है।
को परास्त ना कर पाए तो विष्णु
वेदना उपाध्याय
2 comments:
वेदना जी, इतना गहरा सोचना स्त्रियों को शोभा नहीं देता, जैसे जोर से हँसना, जोर से रोना, अपने अधिकारों का रोना रोना आदि आदि।
परन्तु शोभनीय करते करते उकता जाने पर अशोभनीय किन्तु नीतिसंगत करने का समय कब का आ चुका है। अब हमें पूजा नहीं केवल मनुष्य व नागरिक के अधिकार चाहिए।
आपके लेख से सहमत हूँ।
घुघूती बासूती
बहुत खूब , पूर्णतया सहमत हूँ आपसे । लेकिन जरा संभल कर अभी वे आते ही होंगे जो कहते हैं कि रामायण पुरान सब, कथित, पुरानी बाते बकवास हैं।
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