Search This Blog

Monday, January 4, 2010

कविता भी बहुत सार्थक है।

नीरवजी आपकी व्यंग्य रचना संपादक की शादी पढ़ी,बहुत ही मज़ा आया। बहुत दिनों बाद आपके ये तेवर देखने को मिले। लगता है कि आपका हास्य-व्यंग्य कवि फिर से फनफनाने लगा है। अच्छा है बीच-बीच में रियाज बनाए रखना ताहिए। असल्थीजी की शोकसभा में तो आप जरूर गए होंगे। मकबूलजी की ग़ज़ल बढ़िया लगी। और अनिलजी की कविता भी बहुत सार्थक है। बधाई।
भगवान सिंह हंस

No comments: