अजब इंसान हूँ मैं ज़िन्दगी के गीत गाता हूँ
भला हो या बुरा मौसम ख़ुशी के गीत गाता हूँ।
जो मिलता है उसे अपना नसीबा मान लेता हूँ
जो खोया है उसे मैं भूल के भी गीत गाता हूँ।
मुझे हर सांस में उसकी कमी महसूस होती है
मैं सब कुछ हार कर भी जीत के ही गीत गाता हूँ।
बुरा महसूस करता हूँ भला फिर भी मैं करता हूँ
करम फ़रमाँ हर इक लम्हा तुम्हारे गीत गाता हूँ।
ज़मीं हिलती हुई मक़बूल अब महसूस होती है
इसी हिलती ज़मीं पर मैं ख़ुशी के गीत गाता हूँ।
मृगेन्द्र मक़बूल
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