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Sunday, January 24, 2010

एक कविता

शीत तुझे जाना ही होगा
आज समय की यही माँग है
बसंत को लाना ही होगा
शीत तुझे जाना ही होगा

खुश होकर जा या कि रूठकर
चाहे रो ले फूट फूटकर
साथ रहेगा किन्तु छूटकर
विरह गीत गाना ही होगा
शीत तुझे जाना ही होगा

कुहरा, पाला, सर्द हवाएं
जुकाम, खाँसी, और दवाएं
कितना ही चीखे चिल्लाएं
इनको विष खाना ही होगा
शीत तुझे जाना ही होगा


आया पहन शरद का मुखड़ा
लेकिन मुझे ठण्ड में जकड़ा
और कहाँ तक रोऊँ दुखड़ा
छुटकारा पाना ही होगा
शीत तुझे जाना ही होगा


तूने घमण्ड ऐसा ओढ़ा
वृक्षों को भी तो ना छोड़ा
मार उन्हें पतझड़ का कोड़ा
तुझको पछताना ही होगा
शीत तुझे जाना ही होगा

छुप जा बसंत आते होंगे'
सब सुख मेरे माथे होंगे
बच्चे हँसते गाते होंगे
सबको मुस्काना ही होगा
शीत तुझे जाना ही होगा


प्रस्तुति-प्रदीप शुक्ला

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