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Friday, January 15, 2010

अमर शहीद अशफाकुल्ला खां कि ग़ज़ल

भई अरविन्द पथिक द्वारा प्रस्तुत अमर शहीद अशफाकुल्ला खां की ग़ज़ल पेश कर बड़ा पुन्य का काम किया है.अनिल जी और राजमणि जी की प्रस्तुति भी सराहनीय है। इन्ही प्रतुतियों की वजह से ब्लॉग को चार चाँद लगते है। हैती के द्रस्य ह्रदयविदारक हैं। लगता है प्रकृति अपने साथ हुए खिलवाड़ का बदला ले रही है।
आज आरज़ू लखनवी की एक बहुत प्रसिद्द ग़ज़ल पेश है।
किसने भीगे हुए ज़ुल्फों से ये झटका पानी
झूम के आई घटा, टूटके बरसा पानी।

रो लिया फूटके, सीने में जलन अब क्यों है
आग पिघला के निकाला है ये जलता पानी।

कोई मतवाली घटा थी, कि जवानी की उमंग
जो बहा ले गया, बरसात का पहला पानी।

टिकटिकी बांधे वो फिरते है, मैं इस फिक्र में हूँ
कहीं खाने लगे चक्कर न ये गहरा पानी।

बात करने में वो उन आँखों से अमृत टपका
आरज़ू देखते ही मुंह में भर आया पानी।
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मक़बूल

2 comments:

Udan Tashtari said...

आभार आरजू लखनवीं जी की रचना प्रस्तुत करने का:

रो लिया फूटके, सीने में जलन अब क्यों है
आग पिघला के निकाला है ये जलता पानी।

क्या बात है!!

Maqbool said...

shukriyaa janaab,
maqbool