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Friday, January 15, 2010

हिंदी प्रशिक्षक जो जा रहे हैं वे दोयम दर्जे के हैं



डॉ. कविता वाचक्नवी के सम्मान में गोष्ठी
नई दिल्ली रमणिका फांउडेशन के तत्वावधान में लंदन से पधारीं डॉ. कविता वाचक्नवी के सम्मान में गोष्ठी का आयोजन रमणिका गुप्ता के डिफेंस कॉलोनी स्थित आवास पर संपन्न हुआ जिसमें पं. सुरेश नीरव,परेप्रकाश और रमणिका गुप्ता को अलावा डॉ. कविता वाचक्नवी ने कविता पाठ किया। और इसके बाद उन्होंने इस बात पर गहरी चिंता भी ऴ्यक्त की कि विदेशों में जो हिंदी प्रशिक्षक जा रहे हैं वे दोयम दर्जे के हैं और इनका हिंदी का ज्ञान अत्यंत सतही होता है इसलिए वहां रह रहे क्षात्रों को उचित ज्ञान नहीं मिल पा रहा है। सरकार को इस मामले में पहल करनी चाहिए।
 प्रस्तुत है कविता वाचक्नवी की एक कविता

माँ बूढी़ है 
 कविता वाचक्नवी
 

झुककर
अपनी ही छाया के
पाँव खोजती
माँ के
चरणों में
नतशिर होने का
दिन आने से पहले-पहले ;
कमरे से आँगन तक आकर
बूढ़ी काया
कितना ताक-ताक सोई थी,
सूने रस्ते
बाट जोहती
धुँधली आँख,  इकहरी काया
कितना काँप-काँप रोई थी।



बच्चों के अपने बच्चे हैं
दूर ठिकाने
बहुओं को घर-बाहर ही से फुर्सत कैसे
भाग-दौड़ का उनका जीवन
आगे-आगे देख रहा है,
किसी तरह
तारे उगने तक
आपस ही में मिल पाते हैं
बैठ, बोल, बतियाने का
अवसर मिलने पर
आपस ही की बातें कम हैं?
और बहू के बच्चों को तो
हर वसंत में माँ की अपने आँगन के अमुवा की बातें
निपट जुगाली-सी लगती हैं
सुंदर चेहरों की तस्वीरें मन में टाँके
किसे भला ये गाल पोपले सोहा करते?
छुट्टी वाली सुबह हुई भी
दिनभर बंद निजी कमरों में
आपस में खोए रहते हैं।




2 comments:

Kavita Vachaknavee said...

Neerav ji,

Atishay dhnyavaad. ap sab se bhent kar harsh hua, va kavitayein sun kar mun mudit bhi.
Shikshakon ke star ko lekar hue samvad mein maine Norwey (sansmaran) ke sandarbh mein yah baat kahi thee, kahin iskaa aashay yah na laga liya jaye ki main aaj videshon mein uchchh sikshan ke liye jane vale adhyapkon par koi tippani kar rahi hoon, varna akaran log mere shatru ban jayenge. :-)

Kavita ka kafi ansh cut gaya hai.Gmail mein lambi cheejein cut kar milti hain isilie aap ko adhoori mili hogi. poori kavita yahan hai - http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%81_%E0%A4%AC%E0%A5%82%E0%A4%A2%E0%A5%80%E0%A4%BC_%E0%A4%B9%E0%A5%88_/_%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE_%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A5%80

अनूप शुक्ल said...

वाह बड़े बढिया मुलाकात के चित्र। सुन्दर कविता है।