अनिलजी आपने बहुत अच्छी गजल पढ़वाई है। इन शेरों के तो कहने ही क्या हैं-
हवा में शब्द बहुत गड्ड- मड्ड होते हैं
हवा पे आँख तो रखना पर कान मत रखना
जहाँ पे बैठ के प्रहरी को नींद आ जाये
तुम अपने खेत में ऐसा मचान मत रखना।
मकबूलजी निदा साहब की गजल बहुत ही उम्दा है। वैले तो उनकी हर ग़ज़व ही उम्दा होती है। मगर इन शेरों में तो उन्हेंने कमाल ही कर दिया है-
इक मुसाफिर के सफ़र जैसी है सब की दुनिया
कोई जल्दी में, कोई देर से जानेवाला।
एक बेचारी सी उम्मीद है, चेहरा चेहरा
जिस तरफ देखिए, आने को है आनेवाला।
भाई प्रदीप शुक्लाजी ने कई दिनों बाद किताबों की दुनिया स्तंभ में मेहनत की है। मैं उन्हें तहेदिल से शुक्रिया करता हूं। भगवान सिंह हंस जी ने बहुत ही अच्छी टिप्पणी दी है। मैं उनका भी आभारी हूं।
पं. सुरेश नीरव
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