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Sunday, January 17, 2010

अब ख़ुशी है न कोई ग़म रुलानेवाला

अब ख़ुशी है न कोई ग़म रुलानेवाला
हमने अपना लिया हर रंग ज़मानेवाला।

उसको रुखसत तो किया था, मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया, घर छोड़ के जानेवाला।

इक मुसाफिर के सफ़र जैसी है सब की दुनिया
कोई जल्दी में, कोई देर से जानेवाला।

एक बेचारी सी उम्मीद है, चेहरा चेहरा
जिस तरफ देखिए, आने को है आनेवाला।
निदा फाजली
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मक़बूल

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