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Saturday, January 16, 2010

पांडेजी कहिन---

 आज हमारे लोकमंगल ब्लॉग को नियमित देखनेलाले श्री हीरालाल पांडे ने हमें टेलीफोन पर बताया  बल्कि यूं कहें कि सुझाया है कि हेती के जलजले में जो भारी  जान-माल की हानि हुई है उसकी तस्वीरें दिखाकर आपने मानवीय पक्ष तो उजागर किया है मगर इन पीढितों की मदद के लिए आगे आने के लिए सामाजिक संस्थाओं का आहवान नहीं किया है अगर कोई मदद करना चाहे तो वह कहां जाए।
0 सुझाव उनका काबिले तारीफ है इस पर या इस प्रकार के हादसों में ब्लॉग की भूमिका क्या हो इस पर विचार-विमर्श करने के बाद ही हम कोई रीति-नीति का निर्धारण करेंगे।
इनका एक सुझाव और है कि ब्लॉग की पोस्ट में भदेस शब्दों के प्रयोग न किया जाए क्योंकि इसे परिवार के लोग भी पड़ते हैं और साथ में उनके कभी-कभी  ऐसे शब्दों के प्रयोग उलझन पैदा कर देते हैं इनसे हर संभव बचा जाए यह बहस का एक मुद्दा है बहरहाल मैं इनके सुझाव बिना किसी लाग-लपेट के आप के सामने परोस रहा हूं और उन्हें इस बात के लिए धन्यवाद देता हूं कि इनके सामाजिक सरोकार हमारे ब्ल़ॉग के जरिए मनुष्यता से जुड़े हैं।  मनोज मिश्र और दिनेश राय द्विवेदी ने मेरी पोस्ट पर अपनी टिप्पणी भेजी है और  लिखा है कि लौंडेबाजी हमारे समाज में सदियों से चला आ रहा खेल है और रहीस लोग तो बाकायदा लौंडे पालते थे।
  0 जब इस मुद्दे पर कुछ लिखा जा रहा है तो पहले तो यह मुद्दा  ही शर्मनाक है और उस को नजर अंदाज करना उससे भी ज्यादा शर्म की बात है। बलात्कार के मुकदमें में अदालत में जो सवाल पूछे जाते हैं वह कैसे होंगे। जब प्रकरण ही लज्जाजनक है तो उसे खंगालनेवाले सवाल भी उसी तेवर के होंगे। रुदाली और बेंडेटक्वीन में जो खालिस गालियां दी गई हैं उसे सेंसर ने भी स्वीकृत किया है। भाषा परिस्थिति के हिसाब से मुद्रा बदलती है ऐसा लोग कहते हैं।  चलिए आप ने थमे हुए पानी में कंकड़ फेंककर उसमें तरंगे उठाई हैं। मूल्य हमेशा जनमत ही तय करता है। मैं आपके विचारों को तरजीह देता हूं। मेरे पालागन..
पं. सुरेश नीरव

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