नीरवजी सहारनपुरवाली आपकी पोस्ट मैंने भी पढ़ी थी और भीतर तक हिल गया था। सचमुच आज बेरोजगारी ने आदमी को कहां ला कर खड़ा कर दिया है। जब आपके द्वारा प्रयुक्त शब्द को मैंने पढ़ा तो आश्टर्य हुआ फिर जब मैं इस शब्द का विकल्प ढ़ूंढने लगा तो इस का पर्याय शब्द कहीं नहीं मिला। शब्दकोष में भी यही शब्द है। क्या हम नए शब्द गढ़ें या फिर जो मान्य हैं अन्हें ही चलने दें। शब्द संस्कॉति के सापेक्ष होते हैं इस लिए हम इनका अलग से अस्तित्व तय कर ही नहीं सकते। अगर कोई गधा है तो उसे गधा ही कहा जाएगा अन्य किसी शब्द में इतनी ताकत नहीं है। बहस अपनी जगह है और समस्या अपनी जगह। मेरे हिसाब से प्रसंग को अगर बल मिलता है तो शब्द का उपयोग जायज है।
भगवान सिंह हंस
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