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Saturday, January 16, 2010

राठौर जैसों का तोड़ ...

राठौड़ ने कोर्ट से जमानत पाने के बाद मीडिया से कहा ..........'मैं न्याय व्यवस्था को उस तरह नष्ट नहीं करना चाहता जैसे कि मीडिया कर रहा है। इसलिए मैं जाँच से जुड़े किसी भी मुद्दे पर कुछ नहीं बोलूंगा। लेकिन, अगर आप चाहते हैं तो मैं अपनी मुस्कुराहट पर जरूर बोलूंगा जिस पर आप कुछ ज्यादा ही ध्यान दे रहे हैं। मैंने पंडित जवाहर लाल नेहरू से सीखा है कि मुश्किलों में कैसे मुस्कुराते हैं। मैं और ज्यादा मुस्कुराऊंगा। अगर आप मुझे नुकसान पहुँचाते हैं तो मैं और ज्यादा मुस्कुराऊंगा।'

राठौर जैसे जाने कितने तीसमारखां जेल में पड़े सड़ रहे हैं। जो आदमी खुद न्याय व्यवस्था से मुहं छिपाता, भागता फिर रहा है, उसे वो क्या नष्ट करेगा। भारतीय न्याय प्रणाली को राठौर जैसे नष्ट तो क्या हिला भी नहीं सकते। बाकी रही जाँच से जुड़े मुद्दे पर बोलने की बात, तो राठौर के पास बोलने को है ही क्या? समाज और देश के सामने जन्मजात अवस्था में तो खड़ा है वो आज।

मीडिया लोकतंत्र का मजबूत और चौथा पाया है जो जनमत की आवाज है। इस की बदौलत ही विकास यादव, मनु शर्मा, रोमेश शर्मा, आर. के. शर्मा जैसे लोग सलाखों के पीछे हैं। सोच राठौर सोच, कोर्ट से छ: महीने की सजा पर जब लोगों में इतना गुस्सा उबला तो सोच, लोगों के हाथ अगर लग गया होता तो राठौर, छिपने के लिए भी ठौर नहीं मिलती और फिर मुकदमा, फैसला और न्याय एक साथ ही सड़क पर ही हो गया होता। चेहरे की मुस्कराहट हार चढ़ी फोटो बन कर दिवार पर लटक जाती।

हद है निर्लज्जता की। अपने साथ पंडित नेहरु को जोड़ता है। पंडित नेहरु नहीं पंधेर और सुरेंदर कोली जैसे होंगे इस कुटिल मुस्कुराहट के प्रेरणा स्रोत । नेहरु तो बच्चों को प्यार करते थे, उनके चाचा थे वो।

जिस दिन न्याय होगा उस दिन देखेंगे कितना मुस्कुराएगा । जितना नुकसान पहुंचाएंगे उतना ही मुस्कुराने का दम है तो खुली सड़क पर लोगों के बीच आ कर तो दिखा, तब पता चलेगा कि नुकसान क्या होता है।
राठौर जैसे बेशर्म और समाज के नासूरों का यही हश्र होना चाहिए।

अनिल (१६.०१.२०१० सायं ४.०० बजे )

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