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Wednesday, January 13, 2010

पत्थर के ख़ुदा, पत्थर के सनम...

पत्थर के ख़ुदा, पत्थर के सनम, पत्‍थर के ही इंसां पाए हैं

तुम शहरे मुहब्‍बत कहते हो, हम जान बचाकर आए हैं ।।

बुतख़ाना समझते हो जिसको पूछो ना वहां क्‍या हालत है

हम लोग वहीं से गुज़रे हैं बस शुक्र करो लौट आए हैं ।।

हम सोच रहे हैं मुद्दत से अब उम्र गुज़ारें भी तो कहां

सहरा में खु़शी के फूल नहीं, शहरों में ग़मों के साए हैं ।।

होठों पे तबस्‍सुम हल्‍का-सा आंखों में नमी सी है 'फ़कीर'

हम अहले-मुहब्‍बत पर अकसर ऐसे भी ज़माने आए हैं ।।

सुदर्शन फकीर

प्रस्तुति : अनिल (१३-०१.२०१० सायं ७.२० बजे )

2 comments:

महेन्द्र मिश्र said...

मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामना . भगवान सूर्य की पहली किरण आपके जीवन में उमंग और नई उर्जा प्रदान करे

Mithilesh dubey said...

बहुत खुब । मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामना