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Thursday, January 21, 2010

बादल, तितली, धूप, घास, पुरवाई में

प्रिय भाई अमर ज्योति ,नदीम, जी। ब्लॉग पर आने का शुक्रिया। मेरे पास आपको संपर्क करने का कोई रास्ता नहीं है। आपका न तो मेरे पास पता है और न ही कोई फ़ोन या मोबाइल नंबर। आप की काफी गजलें मैंने पढ़ी हैं और आपकी प्रतिभा का मैं मुरीद हूँ। कृपया अपना मोबाइल न० मुझे देने की कृपा करैं ताकि आपसे गुफ्तगू की जा सके। आज आप की ही एक और ग़ज़ल पेश है।
बादल, तितली, धूप, घास, पुरवाई में
किस का चेहरा है इन की रानाई में।

तुम तो कहते थे हर रिश्ता टूट चुका
फिर क्यों रोये, रातों की तन्हाई में।

वो साहिल की रेत देख कर लौट गया
काश उतरता दरिया की गहराई में।

पत्थर इतने आए, लहू- लुहान हुई
ज़ख़्मी कोयल क्या कूके अमराई में।

दिल और आंखें दोनों ही भर आते हैं
किसने इतना दर्द भरा शहनाई में।
अमर ज्योति ,नदीम,
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मक़बूल

1 comment:

vivek said...

priy, amar jyoti ji aapka naam to suna suna thha hi kavitaa padakar maloom hua ki main to aapke shadon ka mitra hun bahut achha laga phirse aapki kavita chitthe par padkar main theatre artist,musician,aur patrakaar hun.. mere blog www.rangdeergha.blogspot.com par aapka swagat hai ,ise padkar apne vicharon se awagat ZAROOR KARWAYEN