दिन छोटे और रात बड़ी, प्यारी लगती धूप बड़ी, धूप के बिन हम रह ना पायें । जाड़ों के अब दिन हैं आये ॥ हीटर से हम ठण्ड भगायें, कपड़ों के बिन हम रह ना पायें, ऊनी कपड़े लौट के आये । जाड़ों के अब दिन हैं आये ॥ गरम-गरम हम खाना खाएं, बिन पंखों के ही सो जाएं, मजा रजाई का ले पायें । जाड़ों के अब दिन हैं आये ॥ जब हम ऑफिस में आ जायें, चाय की प्याली खूब उड़ाएं, जाड़ों के अब दिन हैं आये ॥ - सचिन कुमार
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यह मंच आपका है आप ही इसकी गरिमा को बनाएंगे। किसी भी विवाद के जिम्मेदार भी आप होंगे, हम नहीं। बहरहाल विवाद की नौबत आने ही न दैं। अपने विचारों को ईमानदारी से आप अपने अपनों तक पहुंचाए और मस्त हो जाएं हमारी यही मंगल कामनाएं...
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Tuesday, January 12, 2010
सचिन की कविता
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