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Tuesday, January 12, 2010

सचिन की कविता

जाड़ों के अब दिन हैं आये


दिन छोटे और रात बड़ी,
प्यारी लगती धूप बड़ी,
धूप के बिन हम रह ना पायें ।
जाड़ों के अब दिन हैं आये ॥


हीटर से हम ठण्ड भगायें,
कपड़ों के बिन हम रह ना पायें,
ऊनी कपड़े लौट के आये ।
जाड़ों के अब दिन हैं आये ॥


गरम-गरम हम खाना खाएं,
बिन पंखों के ही सो जाएं,
मजा रजाई का ले पायें ।
जाड़ों के अब दिन हैं आये ॥


जब हम ऑफिस में आ जायें,
चाय की प्याली खूब उड़ाएं,
जाड़ों के अब दिन हैं आये ॥


- सचिन कुमार





 

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