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Sunday, January 17, 2010

आप सभी का भी मैं शुक्रगुजार हूँ।

सर्वप्रथम मैं नीरवजी, मकबूल जी, राजमणि जी, हंस जी, डॉक्टर मधु चतुर्वेदी, प्रदीपजी, कर्नल विपिन चतुर्वेदी जी का धन्यवाद और उन्हें साधुवाद देना चाहता हूँ जिनके निरंतर रचनात्मक योगदान से जय लोकमंगल की जय हो रही है। इसी के साथ मैं आपकी हौसला अफजाई का भी शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ । आशा है आप सभी का आशीर्वाद और मार्गदर्शन इसी प्रकार मिलता रहेगा।
कुछ और महानुभावों की प्रतिक्रियाएँ भी मुझे मिली हैं जिनमे यसोनी, दीपायन, कविताजी, समीर लालजी, संगीता पुरीजी, परमजीत बाली और श्यामल सुमनजी शामिल हैं। आप सभी का भी मैं शुक्रगुजार हूँ।

आज आपके सामने एक ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ, मुलाहिजा हो...

कुछ तो दुनिया की इनायत ने दिल तोड़ दिया
और कुछ तल्ख़ी-ए हालात ने दिल तोड़ दिया

हम तो समझे थे कि बरसात मे बरसेगी शराब
आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया

दिल तो रोता रहे और आँख से ऑसू न बहे
इश्क़ की ऐसी रवायात ने दिल तोड़ दिया

वो मेरे है मुझे मिल जाऎगे आ जाऎगे
ऐसे बेकार खय़ालात ने दिल तोड़ दिया

आपको प्यार है मुझसे कि नही है मुझसे
जाने क्यो ऐसे सवालात ने दिल तोड़ दिया

प्रस्तुति: अनिल (१८.०१.२०१० अप १.४५ बजे )

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