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Tuesday, January 19, 2010

कुमार रवीन्द्र का गीत


ऋतु जलसे की
महानगर में
नदी-किनारे जंगल काँपा

पिछली बार कटे थे महुआ
अबकी जामुन की बारी है
पगडंडी पर
राजा जी के आने की सब तैयारी है

आगे बडे मुसाहिब
उनने
जंगल का हर कोना नापा

बेल चढी है जो बरगद पर
आडे आती है वह रथ के
हर झाडी काटी जायेगी
दोनों ओर उगी जो पथ के

आते हैं हर बरस
शाह जी
नदी सिराने महापुजापा

उधर मडैया जो जोगी की
उसमें रानी रात बसेंगी
वनदेवी का सत लेकर वे
अपना कायाकल्प करेंगी

महलों में
बज रहे बधावे
जंगल ने डर कर मुँह ढाँपा।

प्रस्तुत कर्ता राजमणि

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