उम्र कुछ इस तरह तमाम हुई
आँख जब तक खुली कि शाम हुई।
जीना आसान हो गया, हर शै
या हुई फ़र्ज़ या हराम हुई।
जिस को तुम से भी कह सके न कभी
आज वो दास्तान आम हुई।
सूखी आँखों से राह तकती है
ज़िन्दगी कैसी तश्नाकाम हुई।
दफ्न बुनियाद में हुआ था कौन?
और तामीर किस के नाम हुई।
नदीम
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मक़बूल
4 comments:
मच्छर चालीसा
जय मच्छर बलवान उजागर, जय अगणित रोगों के सागर ।
नगर दूत अतुलित बलधामा, तुमको जीत न पाए रामा ।
गुप्त रूप घर तुम आ जाते, भीम रूप घर तुम खा जाते ।
मधुर मधुर खुजलाहट लाते, सबकी देह लाल कर जाते ।
वैद्य हकीम के तुम रखवाले, हर घर में हो रहने वाले ।
हो मलेरिया के तुम दाता, तुम खटमल के छोटे भ्राता ।
नाम तुम्हारे बाजे डंका ,तुमको नहीं काल की शंका ।
मंदिर मस्जिद और गुरूद्वारा, हर घर में हो परचम तुम्हारा ।
सभी जगह तुम आदर पाते, बिना इजाजत के घुस जाते ।
कोई जगह न ऐसी छोड़ी, जहां न रिश्तेदारी जोड़ी ।
जनता तुम्हे खूब पहचाने, नगर पालिका लोहा माने ।
डरकर तुमको यह वर दीना, जब तक जी चाहे सो जीना ।
भेदभाव तुमको नही भावें, प्रेम तुम्हारा सब कोई पावे ।
रूप कुरूप न तुमने जाना, छोटा बडा न तुमने माना ।
खावन-पढन न सोवन देते, दुख देते सब सुख हर लेते ।
भिन्न भिन्न जब राग सुनाते, ढोलक पेटी तक शर्मात
sir,
mere orkut pe kisine bheja, muzze achalaga to aapko bhejdiya.
दफ्न बुनियाद में हुआ था कौन?
और तामीर किस के नाम हुई।
kya baat hai...wah nadeem saab aur shukria maqbool ji!!
आदरणीय मक़बूल जी,
ग़ज़ल को अपने ब्लॉग पर स्थान देने के लिये आभारी हूं। पोस्ट करने से पूर्व या पश्चात मुझे सूचित कर दिया होता तो शायद मुझे और भी अच्छा लगता।
सादर,
अमर ज्योति 'नदीम'
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