मैं तल्खी -ए - हयात से घबरा के पी गया
गम की सियाह रात से घबरा के पी गया
इतनी दक़ीक शै कोई कैसे समझ सके
याजदान के वाकियात से घबरा के पी गया
छलके हुए थे जाम परेशां थी जुल्फ -ए -यार
कुछ ऐसे हादसात से घबरा के पी गया
मैं आदमी हूँ कोई फ़रिश्ता नहीं हजूर
मैं आज अपनी ज़ात से घबरा के पी गया
दुनिया -ए - हादसात है एक दर्दनाक गीत
दुनिया -ए - हादसात से घबरा के पी गया
कांटे तो खैर कांटे हैं उनसे गिला ही क्या
फूलों की वारदात से घबरा के पी गया
वो मुझसे कह रहे थे कि पी लीजिये हजूर
उन की गुज़रिशात से घबरा के पी गया
प्रस्तुति : अनिल (०१.०२.२०१० दोप २.४५ बजे )
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