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Monday, February 1, 2010

रोम की हवाओं में इतिहास तैरता है।


 
 आज ही लौटकर आया हूं। इटली के बारे में सुना तो बहुत था मगर देखने का मौका मिला हिंदी के जरिए। भारतीय संस्कृति संस्थान के अंतर्राष्ट्रीय राजभाषा शिविर के एक सप्ताह के आयोजन में रोम,मिलान,फ्लोरेंस और वेनिस को खूब नजदीक से देखा। रोम में, रोम की हवाओं में इतिहास तैरता है। कभी दुनिया की सभ्यता का केन्द्र रहा रोम  आज भी अपनी पुरानी शान-ओ-शौकत का परचम लहरा रहा है। कभी रोम में अकाल पड़ाथा तो वहां के राजा मे जनता का भूख से ध्यान हटाने के लिए एक खौफनाक खेल शुरू किया था। एक पिंजरे में खूबसूरत औरत और एक पिंजरे में शेर बांध कर रखा जाता था। रोम का नागरिक पहले पिंजरे से शेर को खोलता था। भूखे शेर से उसकी लड़ाई होती थी अगर जीत जाता था तो उसे तोहफे हंसीना मिलती थी और हार जाता था तो शेर को भोजन मिल जाता था और एक नागरिक कम हो जाता था। सबसे  पहले मैंने उसी कोलोजियम को देखा। फिर देखा जोप का पवित्र शहर सिटी वेटिकानो। पोप वहां जनता को दर्शन देते हैं। इतवार और शुक्रवार को। इत्तफाक से उस दिन इतवार ही था। उनके दर्शन का सौभाग्य निला। और उनके उस चर्च को देखने का अवसर भी जो दुनिया में  एक ही है। फिर वहां से पीसा जाना भी हुआ जहां विश्वप्रसिद्ध पीसा की मीनार देखने को मिली। माइकल एंजिलो और विंची के शहर में उनकी कला की आत्मा हर ईंट में सांस लेती है। मेजिनी और गैरीबाल्डी जैसे चिंतक और योद्धा पर पूरे इटली को नाज़ है। जगह-जगह उनकी मूर्तियां लगी हैं। और एक चौक का नाम भी गैरी बाल्डी के नाम पर है। कभी मुसोलिनी ने इसी इटली में फासीवाद की नींव रखी थी और इटली को एक ताकतवर देश बनाया था और फिर उसी रोम को तबाह करने का कारण भी मुसोलिनी ही बना। दूसरे विश्व युद्ध में कितने बमों के जख्म इस रोम ने सहे हैं यह रोम देखकर ही पता लगता है। इसी रोम में रोम के लोगों ने मुसोलिनी की हत्या भी कर दी थी। मोनालिसा जैसी विश्लप्रसिद्ध पेंटिग बनानेवाला विंची इसी रोम में पैदा हुआ था और माइकल एंजिलो ने तमाम विश्व प्रसिद्ध मूर्तियों से इस शहर को सजाया है। मिलान इटली का औद्योगिक शहर है और फैशन का केन्द्र भी। हर साल फैशन डिजायनिंग की यहां प्रतियोगिता होती है। एक-से- बढ़कर एक कारें और मोटर साइकल यहां बनती हैं। सेंट्रो,होंडा और फीयट इसी मिलान में बनती हैं। अब इस शहर में कोई रहता नहीं है। सिर्फ दफ्तर और कारखाने यहां हैं और प्रतिदिन लोग यहां कारों से आते हैं और काम कर वापस लौट जाते हैं।
वेनिस झीलों का शहर है। कभी शेक्सपीयर की कहानी मर्चेंट ऑफ वेनिस पढ़ी थी अब उसे देखने का मौका भी मिला। नीचे लहराता समुद्र और ऊपर से बरसती बर्फ और तैरते मकान। यहां सिर्फ स्टीमर और छोटी नाव जिसे गंडोला कहते हैं बस यही परिवहन का साधन है। सिटीबस भी नाव की होती हैं। बोबद खूबसूरत है यह शहर। आज बस इतना ही लिखकर अपनी हाजरी दर्ज कर रहा हूं।
भाई प्रदीप शुक्ला, राजमणि और अनिलजी के अलावा मकबूलजी ने मेरी गैरहाजिरी में मशाल जलाए रखी मैं इन सभी का आभारी हूं।
पं. सुरेश नीरव

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