आओ तुम्हें इक नाम दिला दूँ 
ब्लॉगिंग का सम्मान दिला दूँ. 
जगते हो तुम बड़े सबेरे 
सन्नाटे जब जग को घेरे 
कुर्सी से तुम चिपक गये हो 
कम्प्यूटर पर आँख तरेरे. 
इसका कुछ इनाम दिला दूँ 
आओ तुम्हें इक नाम दिला दूँ 
ब्लॉगिंग का सम्मान दिला दूँ. 
बीबी जब सोकर उठती है 
तेरी हालत पर कुढ़ती है 
ब्लॉगिंग की लत देख सोचती 
इससे बेहतर तो सुरती है. 
आज तुम्हें इक जाम पिला दूँ 
आओ तुम्हें इक नाम दिला दूँ 
ब्लॉगिंग का सम्मान दिला दूँ. 
चाय चाय रटते जाते हो 
कुर्सी में धंसते जाते हो 
कोई काम नहीं करते हो 
जाने क्यूँ हँसते जाते हो. 
चलो तुम्हें कुछ काम दिला दूँ 
आओ तुम्हें इक नाम दिला दूँ 
ब्लॉगिंग का सम्मान दिला दूँ. 
बच्चों से अब बात न होती 
रिश्तों में मुलाकात न होती 
सोने भी तुम कभी न जाते 
गर कमर दर्द से मात न होती. 
आह! दर्द निवारक बाम दिला दूँ 
आओ तुम्हें इक नाम दिला दूँ 
ब्लॉगिंग का सम्मान दिला दूँ. 
सुबह शाम तुम खूब लिखे हो 
टिप्पणी में हर ओर दिखे हो 
ब्लॉगिंग से क्या हासिल होगा 
जाने क्या तुम सोच टिके हो. 
चल खुशियों की शाम दिला दूँ 
आओ तुम्हें इक नाम दिला दूँ 
ब्लॉगिंग का सम्मान दिला दूँ. 
बात बात पर अकड़ रहे हो 
इससे उससे झगड़ रहे हो 
टिप्पणी उसकी पोस्ट तुम्हारी 
नाहक मुद्दे पकड़ रहे हो. 
चल इससे आराम दिला दूँ 
आओ तुम्हें इक नाम दिला दूँ 
ब्लॉगिंग का सम्मान दिला दूँ. 
-समीर लाल ’समीर’
 
 
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