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Thursday, March 4, 2010

ख़ुदा उनकी रूह को रौशनी बख्शें

डा.मखमूर सईदी साहब के इंतक़ाल की ख़बर सुनकर बेहद अफ़सोस हुआ | ऐसा क़द्दावर शायर और हरदिल अज़ीज़ इंसान सदियों में कभी-कभार ही पैदा होता है | उनकी कमी उर्दू अदब और इंसानियत दोनों को हमेशा खलती रहेगी | उनसे मुलाक़ातों के दौरान हमेशा ऐसा महसूस होता था जैसे किसीने अपने लफ़्ज़ों से ज़ेहन में सैकड़ों चराग़ रोशन कर दिए हों | उनके लिए ये अशआर बरबस उतर आते हैं :

जिसने किये हज़ारों चराग़ रोशन
ख़ुदा उनकी रूह को रोशनी बख्शें !

आमीन !

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