जन्म: 1933  | |
| उपनाम | |
| जन्म स्थान | गांव रामपुर, मंदसौर, मध्यप्रदेश | 
| कुछ प्रमुख कृतियाँ  | गीत, दरद दीवानी, दो टूक, भावी रक्षक देश के आदि। | 
प्रस्तुतिःमधु मिश्राआज जयलोकमंगल के पाठकों के लिए प्रस्तुत है हिंदी के लोकप्रियकवि बालकवि बैरागी की बोहद लोकप्रिय कविता-
चाहे ये उपवन बिक जाएं
चाहे सौ फागुन बिक जाएं
पर मैं गंध नहीं बेचूंगा- अपनी गंध नहीं बेचूंगा
जिस डाली ने गोद खिलाया जिस कोंपल ने दी अरुणाई
लक्षमन जैसी चौकी देकर जिन कांटों ने जान बचाई
इनको पहिला हक आता है चाहे मुझको नोचें तोडें
चाहे जिस मालिन से मेरी पांखुरियों के रिश्ते जोडें
ओ मुझ पर मंडरानेवालों
मेरा मोल लगानेवालों
जो मेरा संस्कार बन गई वो सौगंध नहीं बेचूंगा
अपनी गंध नहीं बेचूंगा- चाहे सभी सुमन बिक जाएं।
मौसम से क्या लेना मुझको ये तो आएगा-जाएगा
दाता होगा तो दे देगा खाता होगा तो खाएगा
कोमल भंवरों के सुर सरगम पतझारों का रोना-धोना
मुझ पर क्या अंतर लाएगा पिचकारी का जादू-टोना
ओ नीलम लगानेवालों
पल-पल दाम बढानेवालों
मैंने जो कर लिया स्वयं से वो अनुबंध नहीं बेचूंगा
अपनी गंध नहीं बेचूंगा- चाहे सभी सुमन बिक जाएं।
मुझको मेरा अंत पता है पंखुरी-पंखुरी झर जाऊंगा
लेकिन पहिले पवन-परी संग एक-एक के घर जाऊंगा
भूल-चूक की माफी लेगी सबसे मेरी गंध कुमारी
उस दिन ये मंडी समझेगी किसको कहते हैं खुद्दारी
बिकने से बेहतर मर जाऊं अपनी माटी में झर जाऊं
मन ने तन पर लगा दिया जो वो प्रतिबंध नहीं बेचूंगा
अपनी गंध नहीं बेचूंगा- चाहे सभी सुमन बिक जाएं।
मुझसे ज्यादा अहं भरी है ये मेरी सौरभ अलबेली
नहीं छूटती इस पगली से नीलगगन की खुली हवेली
सूरज जिसका सर सहलाए उसके सर को नीचा कर दूं?
ओ प्रबंध के विक्रेताओं
महाकाव्य के ओ क्रेताओं
ये व्यापार तुम्हीं को शुभ हो मुक्तक छंद नहीं बेचूंगा
अपनी गंध नहीं बेचूंगा- चाहे सभी सुमन बिक जाएं।
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बालकवि बैरागी

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