मिर्जा ग़लिब की मशहूर ग़ज़लजन्म: 27 दिसंबर 1796  | |
| उपनाम | ग़ालिब, असद | 
| जन्म स्थान | आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत | 
| कुछ प्रमुख कृतियाँ  | दीवान-ए-ग़ालिब | 
| विविध | उर्दु के सबसे प्रमुख शायरों में से एक। | 
आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक
 
दामे-हर-मौज में हैं हल्क़-ए-सदकामे-निहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होने तक
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होने तक
हम ने माना के तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जायेंगे हम तुम को ख़बर होने तक
पर्तौ-ए-खुर से है शबनम को फ़ना की तालीम
मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक
यक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफ़िल
गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर[1] होने तक
ग़मे-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग [2]इलाज
शम्म'अ हर रंग में जलती है सहर होने तक
शब्दार्थ: 
1 comment:
bahut hi sundar rachna hai, mirza galib , dhanyawaad.
हिन्दीकुंज
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