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Wednesday, March 3, 2010

आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक

मिर्जा ग़लिब की मशहूर ग़ज़ल

जन्म: 27 दिसंबर 1796
निधन: 15 फ़रवरी 1869

उपनामग़ालिब, असद
जन्म स्थानआगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
कुछ प्रमुख
कृतियाँ
दीवान-ए-ग़ालिब
विविधउर्दु के सबसे प्रमुख शायरों में से एक।

आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक

दामे-हर-मौज में हैं हल्क़-ए-सदकामे-निहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होने तक

आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होने तक

हम ने माना के तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जायेंगे हम तुम को ख़बर होने तक

पर्तौ-ए-खुर से है शबनम को फ़ना की तालीम
मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक

यक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफ़िल
गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर[1] होने तक

ग़मे-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग [2]इलाज
शम्म'अ हर रंग में जलती है सहर होने तक

शब्दार्थ:

  1. चिंगारी का नृत्य
  2. मृत्यु के अतिरिक्
  3. पेशकारः डॉ.मधु चतुर्वेदी

1 comment:

Ashutosh said...

bahut hi sundar rachna hai, mirza galib , dhanyawaad.
हिन्दीकुंज