

आपका व्यंग्य-आलेख पढ़ा। मीडिया को लेकर आपने जो कटाक्ष किए हैं वे जरूरी हैं और सोचने के लिए विवश करनेवाले भी। आज सिर्फ सनसनी फैलाना ही मीडिया का काम रह गया है साहित्य और विचार तो मीडिया से गायब ही होते जा रहे हैं। इस गैरजिम्मेदार मीडिया को अपनी सामाजिक जिम्मेदारी समझनी चाहिए क्योंकि पत्रकारिता मिशन है सिर्फ धंधेबाजी नहीं। आज मुहल्ले-मुहल्ले में ऐसे-ऐसे पत्रकार पैदा हो रहे हैं जिनका काम ब्लैकमेलिंग और दलाली रह गया है। ऐसे में जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। अच्छे लेख के लिए बधाई..
मुकेश परमार
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