
ईद और गणेश चतुर्थी के बीच से निकला एक अच्छा व्यंग्य जयलोकमंगल की वाटिका में खिला है। और इसकी खुशबू ने यह सोचने को मजबूर किया है कि हमारा मीडिया आज अपनी भूमिका किस तरह निभा रहा है। उसे अपनी जिम्मेदारी जरूर समझनी चाहिए। एक विचारवान व्यंग्य के लिए नीरवजी धन्यवाद के पात्र हैं।
00 कल श्री भगवाव सिंह हंसजी के विचार पढ़े और जाना कि कि, किस तरह उन्होंने भरत चरित के लेखन के दौरान तीर्थ यात्राएं की। इन तीर्थों के पुण्य की सुगंध तो वह ऐसा ही लिखते रहें,मेरी मंगल कामनाएं..भरतचरित में महकती है। वह ऐसा ही लिखते रहें,मेरी मंगल कामनाएं..
मधु मिश्रा
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