हास्य-व्यंग्य-
सावधान...दिल्ली में बाढ़ आ रही है
पंडित सुरेश नीरव
इलैक्ट्रानिक चैनलों ने दिल्ली में बाढ़ ला दी है। पूरी दिल्ली बाढ़ में डूब चुकी है। यमुना खतरे के निशान से ऊपर है। सैंकड़ों गांव डूब चुके हैं। आइएसबीटी कश्मीरीगेट पर नावें चल रही हैं। आईटीओ डूब चुका है। खेल गांव में पानी घुस आया है। पुराना पुल खाली करा लिया गया है। स्टेडियम में पानी घुस आया है। मदद के लिए सेना बुला ली गई है।137 ट्रेनें रद्द की जा चुकी हैं। अक्टूबर तक दिल्ली डेंगू की चपेट में होगा। कामनवेल्थ शुरू होने तक दिल्ली या तो डूब चुकी होगी या फिर डेंगू इसे तबाह कर चुका होगा। और इसी समय ऐन खेल के दौरान आतंकी हमले भी हो सकते हैं। उन दिनों सड़कों पर ट्रेफिक जाम इतना ज्यादा होगा कि मंगल ग्रह से पृथ्वी पर आना सरल होगा मगर जमुना पार से इंद्रप्रस्थ स्टेडियम जाना कठिन हो जाएगा। प्रदूषण इतना बढ़ चुका होगा कि लोग पीठ पर आक्सीजन सिलेंडर बांध के निकला करेंगे। पानी की बोतलें तो अभी से लटकाकर चल ही रहे हैं। डेंगू,प्रदूषण,ट्रैफिक जाम ,पानी,बिजली की किल्लत,बढ़ते अपराध और इन सबके बीच होगा हमारा कामन वेल्थ गेम। सन 65 में जब पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया था तो रेडियो पाकिस्तान से भी ऐसे ही समाचार आते थे कि हमारी फौजे दिल्ली के लाल किले तक जा पहुंची हैं। हो सकता है कि प्रेसीडेंट परसों ताजमहल का मुआयना करने पहुंच जाएं। तब हम लोग हंसा करते थे कि बेसिर-पैर की खबरें फैलाकर पाकिस्तान हमारे हौसले पस्त करना चाहता है। फिर देश में सूचना क्रांति हुई। हमारे मीडियाफरोशों ने सोचा कि जब ये अफवाहें फैलाने का काम एक पिद्दी-सा देश पाकिस्तान कर सकता है तो हम क्यों नहीं। हम उससे किस मामले में कम हैं। और बस लग गया हमारा मीडिया सनसनी फैलाने और अपनी टीआरपी बढ़ाने। उसका इससे कोई मतलब नहीं है कि जब सारी दुनिया की नजर भारत पर लगी हुई है उस समय हम अपने ही देश की मिट्टी पलीत करनेवाले समाचार देकर किसका काम कर रहे हैं। जबरदस्ती लोगों के फोटो खिंचवाने का प्रलोभन देकर ढूंढ-ढूंढकर लाया जाता है, किसी गड्ढे में उकड़ूं बैठाकर बताया जाता है कि घुटनों-घुटनों पानी सड़कों पर आ चुका है। और जल्दी ही यह पानी गर्दन तक पहुंचनेवाला है। बस देखते रहिए हमारा चैनल। अब भैया हम तो सिर्फ चैनल देखने को ही पैदा हुए हैं। गर्दन तक डूब रहे होंगे और बस चैनल पर देख रहे होंगे कि हमारे शहर का हाल क्या है। अपनी आंखों देखे पर विश्वास करना तो अंधविश्वास है। बुद्धू..सही उसे मानो जो चैनल पर दिखाया जाता है। और यदि कहीं इस बीच चैनल को सरकार से विज्ञापन की रकम मिल गई तो वह मेरा भारत महान और मंत्री तथा मुख्यमंत्री के साक्षात्कार दिखाकर यह बताने की कोशिश करने लगेंगे कि दिल्ली की हालत बिल्कुल सामान्य है भले ही खुदा न करे उस दिन दिल्ली डूब ही रही हो। पर प्रश्न यह उठता है कि खुदा ना खास्ता यदि दिल्ली डूबी तो वह अपने आप डूबेगी या फिर उसके डुबाने में हमारे मीडिया का भी कुछ योगदान होगा। क्या प्रजातंत्र में कोई भी बड़ी घटना मीडिया के बिना हो सकती है। यह हमारे लोकतंत्र का चौथा खंभा है। इसको नजरअंदाज कैसे किया जा सकता है। इसलिए इनको तो क्रेडिट देनी ही पड़ेगी। बस देखते रहिए अपने खास चैनल..
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