नियत समय सुमंत्र रथ लाये। मांडवी को तैयार पाये । । द्रुतगामी हय जुते निहारे। नभ में लुप्त न तारे सारे । ।
सुमंत्रजी नियत समय पर रथ लेकर आ गए। उधर मांडवी भी तैयार हो गयी। रथ में द्रुतगामी घोड़े जुते हैं। अभी आकाश में सारे तारे लुप्त भी नहीं हुए हैं।
ब्रह्म मुहूर्त की बहु प्रतीक्षा। उत्सुकता से कीनी वीक्षा। ।
सारी निशा योंही बितायी। काका! निद्रा मुझे न आयी। ।
हंस कवि कहते हैं कि मांडवी को ब्रह्म मुहूर्त की बहुत प्रतीक्षा थी। उसने उत्सुकता से उसकी वीक्षा की। मांडवी ने सारी रत यों ही बितायी। मांडवी कहती है कि काका! मुझे सारी रत नींद नहीं आयी।
मांडवी दृग रथ पर सवारी। तुरंत ही रथ बढ़ा अगारी। ।
मिलन की चाह भी अनचाही । धैर्यता जन-जन ने सराही। ।
मांडवी रथ पर सवार हो गयीऔर तुरन्त नंदीग्राम की ओर बढ़ गयी। प्रीतम से मिलन की चाह भी अनचाही है। परन्तु मांडवी की धैर्यता की सराहना जन-जन करता है।
सारथी सुमंत्र निपुण भारी। पलक झपकते कुटी निहारी। ।
चहुँओर दृग विकट सन्नाटा।तनिक बिलोक पियारा फाटा। ।
सारथी सुमंत्र बहुत निपुण हैं। उन्होंने पलक झपते ही वहाँ पहुँचकर नंदीग्राम में कुटी देखी। चारों ओर विकट सन्नाटा है। पौ-सी फट रही है।
रचयिता- भगवन सिंह हंस
प्रस्तुति- योगेश विकास
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