आपका आलेख पढ़ा।आपने बताया है कि आज बिना किसी उद्देश्य के सिर्फ मनोरंजन के वास्ते थके-हारे मजदूर मौज-मस्ती के चलते जो बच्चे पैदा कर रहे हैं वो प्रकारांतर में खाड़ी देशों के मजदूरों का उत्पादनभर है और कुछ नहीं। और औरतें थके मजदूरों के लिए सिर्फ स्लीपिंग पिल्स का काम कर रही हैं। पढ़कर अच्छा लगा। लेकिन अब ये पत्नियां मजदूरों के लिए ही नींद की गोलियों का काम करती होंगी मगर बड़े घरानों में तो ऐसा भी नहीं हो पा रहा है। वहां बीवियां स्लीपिंग किल्स हो रही हैं। पतियों की नींद हराम कर रही हैं ये बीवियां। पति अगर अपनी इछ्छा से यदि पत्नी से संबंध बनाने की जुर्रत करता है तो आज के कानून में इसे बलात्कार माना जाता है। और पति को इस जुर्म में 10 साल की जेल हो जाती है। पत्नी शादी के बाद भी किसी गैरमर्द के साथ लिव-इन-रिलेशन के तहत रह सकती है। सुप्रीम कोर्ट उसे यह हक देता है। पत्नी जरा-सी खुन्नस पर पति के पूरे परिवार को दहेज उत्पीड़न के जुर्म में जेल की हवा खिला सकती है। आज के सीरियलों में औरत की जो छवि दिखाई जा रही है उसके आगे कल की ललिता पंवार भी कुछ नहीं है। फिगर खराब होने के डर से औरत अपने बच्चे को दूध भी नहीं पिलाती। और आज के बच्चे के भाग्य में मां की लोरियों की जगह आय़ा की फटकारें दर्ज हैं। शाम को क्लब से अपने करियर की तरक्की के लिए शरीर को परोसकर आई औरत पति के लिए स्लीपिंग पिल्स नहीं प्राबलम हिल्स हो गई हैं। इसलिए समाज के आभिजात्य वर्ग में बलात्कार योगीजी अब नहीं होते यह बीते दिनों की बाते हैं। .. और परिवारनियोजन के तमाम साधनों और सावधानियों के बाद अगर कोई फरिश्ता जन्म लेने को आमादा हो ही जाए तो तमाम मेरी स्टोप नर्सिंग होम्स अबलाओं की सेवा में मुस्तैदी से हाथ फैलाए खड़े हैं। तब प्रेम का अंकुरण होता ही कहां है। शादी से पहले यदि कोई युवक-युवती प्रेम करने का घिनौना अपराध करते हैं तो तमाम जातिगत पंचायतें उन्हें फासी पर लटकाने का सभ्य औऱ शालीन फतवा जारी कर देती हैं। इस क्रिया को मीडिया आज आनर किलिंग कहता है। वेलेंटाइन डे पर लववर्ड्स को तथाकथित समाज सुधारक पीट देते हैं। मुंह पर तेजाब फेंक कर अपनी संस्कृति का चेहरा उज्जवल कर लेते हैं तब कौन पति है जो जबरदस्ती कर सके और कौन पत्नी है जो स्लीपिंग पिल्स बनने के लिए रातभर नियनित बलात्कार झेलती हो। ऐसी चंद्रमुखी और पारो कभी देवदास के दौर में ही रही होंगी आज हरगिज नहीं हैं। बार गर्ल्स,चीअर लीडर्स,केटवाक करती रेंप पर कूल्हे मटकाती और टीवी केमरे के आगे मुंह पर नकाब बांधे कालगर्ल्स के हुजूम में आप मीरा को कहां तलाश रहे हैं। आज नीबू की सनसनाती ताजगी के रेशमी झाग में छपकोले खाती,कंडीशनरशेंपुओं के झाग से धोए रेशमी बालों को झटकाती, रेंप पर कुल्हे मटकाती,लोमोनेड्स और साफ्ट ड्रिंक्स गले से सटकाती ललनाओं से कोई जबरदस्ती कर सकता है ऐसा रणबांकुरा पति आपके जहन में आज भी है,ताज्जुब है।यह सिर्फ गुजरे हुए कल की परछाइयां हैं आज का यथार्थ दर्शन शायद नहीं। हो सकता है कि आप मेरी बातों से सहमत न हों और हो सकता मैं ही गलत हूं मगर यह सोच मेरी सोच नहीं है समाज के एक बहुत बड़े हिस्से का यही यथार्थ है। विश्वास है।
मेरे अत्यंत विनम्र प्रणाम स्वीकारें..समस्त आस्थाओं सहित..
पंडित सुरेश नीरव

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