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Friday, October 29, 2010

आपका हार्दिक स्वागत

लोकमंगल के सभी सदस्य मंजूऋषिजी का लोकमंगल की सदस्यता ग्रहण करने पर हार्दिक स्वागत करते हैं। पंडित सुरेश नीरवजी अपने पांडित्य एवं विज्ञता के साथ-साथ बड़े नेक तथा सचरित्र इंसान हैं। यह उनकी विद्वतता एवं सचरित्रता का ही प्रतिफल है जिसके लिए हम सब लालायित करते हैं। और मैं समझता हूँ कि उनके साथ भी पवित्र आत्मा ही जुडती हैं चाहे कवि हों, लेखक हों , संत हों , योगी हों, वकील हों, व्यापारी हों , शिक्षक हों , डाक्टर हों, पत्रकार हों, नौकरी-पेशे वाले हों, बालक-युवा-वृद्ध हों, नारि या नर हों। उनकी द्रष्टि में कोई अंतर नहीं है। उनकी यही खूबी है कि वे सभी को समान एवं सम्मान भाव से देखते हैं। उनकी कविता, हास्य-व्यंग लेख, शब्दों से निकलती हुई रसधार और मोतियों की तरह पिरोयी हुई शाब्दिक मणिका जहाँ नेत्रों को खंगालती है वहीँ ह्रदय को झकझोरती हुई इंसान को इंसान बनाने की दायित्व भी रखती है। आज इस व्यापारवाद के युग में उनकी शब्दिका मनुष्य की पीर है, मनुष्य की टीस है और मनुष्यता की पीड़ा है। पंडितजी की शब्दवाहिनी जन-जन को एक दर्शनमय सन्देश प्रदान करती है और उनको उस कीचड़ से , गढ़ढ़े से बाहर निकलती है तथा उनको एक जीवटता के जरिए जिवंतता भी देती है। सभी मनुष्य उनको गुरुता के भाव से ही देखते हैं। धन्य है उनकी उनके मुखारुविंदु से निकली शब्दसरिता जिसमें सभी का गोता लगाने को मन करता है और क्यों न करे क्योंकि शब्द में ही गंगा या सरयू या गोदावरी बहती हैवहीं पर आरण्य है जहाँ आरण्य है वहीं चित्रकूट है और जहाँ चित्रकूट है वहीं राम की कुटी है तथा जहाँ राम की कुटी है वहीँ भरत मिलन होता है जो मनुष्यता का एक दिव्य दर्शन है। जिसको सभी सांसारिक जीव अपने भावी जीवन के लिए अबलोकन करते हैं। पंडित सुरेश नीरवजी के इस लोकमंगल की यही महत्ता है। ऐसा दिव्यदर्शन अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा। फिर पंडितजी के सान्निध्य में क्यों ने आयें। उत्तरोत्तर अग्रसर होते हुए लोकमंगल के लिए पंडितजी को बधाई। नमन। जय लोक मंगल।
भगवान सिंह हंस

1 comment:

mann said...

Swagat ke liye hardik danyavad. I m feeling delighted to be a part of Jai Lok Mangal Family. Today i consider myself to be an infant in this family who will be nurtured and grown with the support, affection and guidance of all the family members. Special Thanks to Neerav Ji.