दिनांक-8अक्टूबर2010
शारदेय नवरात्र
और ये हैं-जनाब प्रशात योगी।
जो इन वादियों में तलाश रहे हैं अध्यात्म का संगीत।
एक ऐसा समाज जहां सिर्फ प्रेम हो सिर्फ प्रेम.। प्रेम ही नाचता हो,प्रेम ही गाता हो जहां। प्रेम की हवाएं चलती हों,लहरों में गूंजता हो प्रेम का संगीत। भंवरों की गनगुन में हो तो प्रेम..तितलियों के पंखों में रचता हो तो प्रेम .. फूल खिलते हों तो प्रेम की गंध में। हर सांस में हो सिर्फ प्रेम .....
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