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Sunday, October 31, 2010

बृहद भरत चरित्र महाकाव्य


ज्येष्ठ का ही राज्यतिलक उचित -
दोहा-राम को क्रोधित बिलोक, कहें कुलगुरु वसिष्ठ।
नास्तिक नहीं हैं महर्षि , शील प्रग्य सदनिष्ठ। ।
राम को क्रोधित देखकर कुलगुरु वसिष्ठ ने कहा कि महर्षि जावालि नास्तिक नहीं हैं। वह शील, प्रग्य और सदनिष्ठ हैं।
जावालि का विअरद संज्ञाना। भू जन का है आना जाना । ।
कैसे हो वापिसी तिहारी । ताहीं वह बात मुनि उचारी । ।
राम! मुनि जावालि का संज्ञान बहुत यशपूर्ण है । मृत्युलोक में तो मनुष्यों का आना जाना लगा रहता है। राम! आपकी अवध वापिसी कैसे हो , इसलिए मुनि ने वह बात कही।
रघुसुत! तिहारा कुल महाना। जगती में पाया सम्माना । ।
सर्व तेजस्वी वीर राजा। किए धरा पर पावन काजा। ।
हे रघुनंदन! आपका कुल महान है। आपके कुल ने संसार में सम्मान पाया हैऔर आपके कुल के सर्व राजा तेजस्वी और वीर हुए हैं तथा उन्होंने संसार में पावन कार्य किए हैं।
स्रष्टि से पूर्व कि है गाथा । ध्यान से सुनो हे रघु नाथा । ।
सब जलमग्न प्रारंभ काला। यह स्रष्टि के पूर्व का हाला । ।
हे रघु नाथ! ध्यानपूर्वक सुनो। यह स्रष्टिपूर्व की गाथा है । प्रारंभ में यह सब जगत जलमग्न था। यह स्रष्टि से पूर्व का हाल है।
रचयिता- भगवान सिंह हंस
प्रस्तुति - योगेश विकास

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