लोग कहते हैं कि हम कान की सुनी नहीं मानते,आँख की देखी को मानते हैं। मगर आंख की देखी का भी कितना भरोसा। रोज सपने देखते हैं,सुहब उठकर पाते हैं कि सब झूठ था। यहां भरोसा ही नहीं है। न कान का भरोसा है न आँख का भरोसा है। इसलिए कदम बहुत संभाल-संभालकर चलना है। सुबह उठखर ही पता चलता है कि सपना था जो झूठ था।
ओशो
प्रस्तुतिःमधु मिश्रा))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))))

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