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Saturday, October 9, 2010

अनुभूतियों के रंग तरल

गीत-
 अनुभूतियों के रंग तरल.....

याद के ये क्षण मधुर हैं पर विरह के पल विकल
उस सुभग के चित्र कितने
कींच हारी कल्पना
किंतु कर पायी न रंजक
रुच्य की अभिव्यंजना
अश्रु बन ढुल-ढुल गया अनुभूतियों का रंग तरल

सृति बनाकर भू धरों में
भाव-सरि के स्वर पनीले
उर्मियों की मुक्त-गति पर
गा रहे कल-गीत-गीले
तारकों में स्वप्न झलमल,लोचनों में क्षार-जल

वेदना के मान में भर
भर झरे जो भार हर
पा मृदुल आहट सदय की
मूक अंचल से बिखर
बिछ गए तरु-पल्लवों पर आंख के मोती तरल।

पंडित सुरेश नीरव
(गीतसंग्रह ततपश्चात से)
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