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Saturday, October 30, 2010

लेख के जिगर का टुकड़ा

0श्री भगवानसिंह हंसजी के भरत चरित के साथ-साथ जो उन्होंने मंजुऋषि के स्वागत में पंक्तियां लिखीं हैं और जिस तरह उन्होंने नीरवजी के व्यक्तित्व को मनोहारी ढंग से प्रस्तुत किया है उसका जबाब नहीं है।बधाई हो हंसजी..

0 आदरणीय नीरवजी
आपके व्यंग्य दिन-ब-दिन धारदार होते जा रहे हैं। पढ़कर मजा आ गया। खासकर ये टुकड़ा तो लेख के जिगर का टुकड़ा बन गया है-
तभी
एक दुखी दफ्तरी आवाज आई- अरे भाई..जब असली गणेश को ही चूहे ने अंटे में ले लिया तो इन गोबर गणेश बासों की क्या औकात जो चूहे के अंटे में न आएं। पंचतंत्र की कथाओं में तो यही चूहा ऋषि को मक्खन लगाकर शेर की पोस्ट तक पहुंच गया था और फिर जब वह ऋषि पर ही झपटा तो ऋषि की समझ में आया कि एक अदना चूहा उसे ही गधा बना गया। अपने अफसरों को हर युग में चूहों ने गधा ही बनाया है। इस बार भी बना रहा है। मगर यह चूहा अफसरों को गधा बनाने के खेल में सेंचुरी जरूर बना लेगा। मुझे इसकी प्रचंड प्रतिभा की जानकारी है। आखिर अकादमी के चूहे का बेटा जो ठहरा।
जयलोकमंगल..
डाक्टर प्रेमलता नीलम
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