अगर शरीर में कहीं घाव हो जाता है तो एक कोशा उस घाव के नजदीक जाती है और घावके चारो ओर कोशाओं की एक झीनी पर्त बुनने लगती है वैसे ही संवेदनाएं जहन से निकलकर कागजों के सीने पर स्मृतियां बुनने लगती है जो किताब की शक्ल में आकर हमें अतीत का आईना दिखाती हैं।
-पंडित सुरेश नीरव
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