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Tuesday, October 12, 2010

भरत चरित्र महाकाव्य

मुनि जावालि का नास्तिक मत -
भालू बाघ भयंकर जन्तू। नहीं देखें को जन व संतू । ।
द्रष्टिपटल उनकी एक बारा। तुरत करें संहार कुढ़ारा। ।
मुनि जावालि कहते हैं कि वन में भयंकर भालू, बाघ आदि वन्य जीव हैं। वे किसी साधु और संत को नहीं देखते हैं। उनकी द्रष्टि एक बार पड़ गयी तो तुरंत उसका संहार कर देते हैं।

शस्य श्यामला पूरी टिहरी। अनाथ-सी अबलोक विचारी। ।
राज तिलक कराओ सु रामा। नीरस द्रगित अवध के धामा। ।
तुम्हारी अयोध्यापुरी शस्य श्यामला है। अब वह विचारी अनाथ-सी दिखाई देती है। हे राम! राज तिलक कराओ और अयोध्या के महलों को देखो।
राम ! अवध में करो नीवासा। जस इंद्र अमरपुरी सुवासा। ।
स्वराज भोगों का उपभोगा । करना कल्याण पूरी लोगा । ।
राम! अवध में ऐसे निवास करो जैसे इंद्र का सुन्दर निवास अमरपुरी में हैं। आपका राज्य भोगों का भी उपभोग है। आप वहां जाकर पुरीके लोगों का कल्याण करो।
नृप दशरथ कुछ नहीं तिहारे। तुम भ नहीं उनके दुलारे। ।
दोनों भिन्न पोषित स्वरूपा। अज पुत्र अयोध्या के भूपा । ।
राजा दशरथ तुम्हारे कुछ नहीं थे। तुम भी उनके दुलारे नहीं हैं। दोनों का अलग-अलग स्वरूप पोषित है। अज पुत्र अयोध्या के राजा हैं।
निदान जो कहता हूँ रामा। वही करो सर्वस अभिरामा। ।
वही है अयोध्या कि शोभा। राम तुम्हें काहे का लोभा । ।
हे राम! अंत में मैं जो कुछ कहता हूँ वही करो। वही सर्वत्र अभिराम है और वही अयोध्या कि शोभा है। राम ! तुम्हें किसी का लोभ नहीं है।
दोहा -जीव के जन्म में तात, केवल हेतु सुहात।
वीर्य व रज संयोग से , जन्म कारणी मात। ।
जीव के जन्म में पिता केवल हेतु सामान शोभित है । वीर्य और रज के संयोग से माँजन्म का कारण बनती है
रचयिता- भगवान सिंह हंस
प्रस्तुतकर्ता- योगेश विकास

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