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Friday, October 8, 2010

करारा व्यंग एक सोच

आदरणीय नीरवजी ने देश की मानसिकता पर एक करारा व्यंग किया है। देश (सरकार) की मानसिकता इतनी दयनीय हो चुकी है और वह अपने को इतना कृपण समझती है कि वह अब भी गुलामी की रस्सियों में बंधी द्रष्टिगोचर होती है। उसको न अपनी ताकत का एहसास है और न दूसरों की दुर्बलता । सरकार ने अपना सब कुछ दाब पर लगा दिया पर मिला क्या -ढ़ाक के तीन पात। रही सही मिडिया ने ऐसी की तैसी कर दी । यह एक सोचनीय बिषय है। नीरवजी के व्यंग ने सभी की बखिया उधेड़ दी है। बहुत ही सटीक ,असलियत को उभरता हुआ , महलों से लेकर टॉयलेट तक और पत्रकारिता की स्वतंत्रता ऐसे भी क्या जो अपने ही घर को फूहड़ बना दे, सरकार और ऊंट की मानसिकता एक जैसी , मंहगाई से आम जनता का किलसना , देश की धन संपदा की बर्बादीआदि पर करारा व्यंग किया है। इसके लिए मैं नीरवजी को बधाई देता हूँ।

डा ० मधु चतुर्वेदी जी को मैं बहुत-बहुत बधाई देता हूँ कि इतनी सारगर्भित पोस्ट लिखी है । उससे बहुत सारी जानकारियां मिली हैं , पढ़कर मन खुश हो गया ।

आदरणीय नीरवजी ने मुझे नंबर वन का खिताव दिया इसके लिए मैं उनका बहुत-बहुत आभारी हूँ और साथ ही उन सभी को मैं हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने मुझे अपना प्यार-दुलार एहसास कराया जिनमें सर्व श्री डा ० मधु चतुर्वेदी, अरविन्द पथिक, डा० प्रेम लता नीलम, मुकेश परमार, प्रकाश प्रलय , रजनीकांत राजू आदि उल्लेखनीय /सम्माननीय विभूतियाँ और जय लोकमंगल उन सदस्यगणों को भी मैं अपना हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने यह पढ़ा या सुना। सभी विद्वतजनों को मेरे प्रणाम। जय लोकमंगल ।

भगवान सिंह हंस
एम-9013456949

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