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Friday, October 8, 2010

बृहद भरत चरित्र महाकाव्य

कष्ट क्यों मानें बहूरानी । रघुकुल की एक सत्य कहानी। ।
मेरा धर्म अवध की सेवा । इस संकट में जो वधु! सेवा । ।
हे बहूरानी! यह कष्ट क्यों मानती है। रघुकुल की एक सत्य कहानी है । अयोध्या की सेवा ही मेरा धर्म है। बहूरानी ! इस संकट में जो सेवा होगी , मैं करूँगा।
बिखरा कुल जुड़ जाए , देवा। मैं समर्पित अवध की सेवा । ।
मेरी यह जर-जर काया । रोता अन्तः न अश्रु आया । ।
हे देव! यह बिखरा कुल किसी तरह से जुड़ जाए। मैं अवध की सेवा में समर्पित हूँ । मेरी यह अति जर-जर काया है। मेरा अन्तः रोता है और मेरे आंसू नहीं आते हैं।
काका! तुम तो सब कुछ जाने। स्वामी यत्न ज्येष्ठ नहीं माने । ।
उन्हें राम अनुसरण सुहाया। वनवासी स्वजीवन बनाया । ।
काका ! आप तो सब कुछ जानते हैं। स्वामी उन्हें वापिस लाने के लिए बहुत प्रयास किया परन्तु ज्येष्ठजी नहीं माने। स्वामी को तो प्रभु राम अनुशरण ही सुहाया और वे स्वयं अपना जीवन वन में तपस्वी बनकर बिता रहे हैं।

रचयिता - भगवन सिंह हंस

प्रस्तुतकर्ता- योगेश विकास

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