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Monday, October 25, 2010

बृहद भरत चरित्र महाकाव्य

राम का आस्तिक मत-
सत्य शपथ ही सत्य प्रतिज्ञा। सत्य का पालन मम सर्वज्ञा। ।
लोभ मोह अज्ञान अविवेका। भंग न कर सकहिं, सत्य एका। ।
राम मुनि जावालि के नास्तिक मत का जवाब देते हुए कहते हैं कि हे मुनि! सत्य शपथ ही सत्य प्रतिज्ञा है। सत्य का पालन मेरे लिए अपरिहार्य है। लोभ, मोह, अज्ञान, अविवेक आदि में से एक भी सत्य को भंग नहीं कर सकता है।
पितृआज्ञा हि मम मर्यादा। तासु पालन मुझे आह्लादा । ।
झूठी प्रतिज्ञाहि धर्म भ्रष्टा । चंचल चित्त सोही कुनिष्ठा। ।
हे मुनि! पिता कि आज्ञा ही मेरी मर्यादा है। उसका पालन ही मेरी प्रसन्नता है। लोगों की झूठी प्रतिज्ञा, धर्मभ्रष्ट और चंचल चित्त ही बुरी निष्ठा है।
चंचल को न पितर स्वीकारें। उस जन को नहीं देव तारें। ।
जन हितकर धर्म सत्यरुपी। सर्वस्व श्रेष्ठ वह बहु रुपी । ।
हे जावालि! चंचल व्यक्ति को पितर स्वीकार नहीं करते हैं। और उस व्यक्ति को देव भी नहीं तारते हैं। यदि सत्यरुपी धर्म मनुष्य के हित में होता है तो वह सत्य अनेकरूपों में सर्वत्र श्रेष्ठ है।
सत्पुरुष जटा वल्कल धारी। तापस धर्म यहाँ स्वीकारी । ।
ताहि धर्म का पालन कर्ता। उसका गुणगान करूँ भर्ता। ।
हे मुनि! सत्पुरुष जटा वल्कल धारण करते हैंऔर इस संसार में तपस्वी धर्म स्वीकार करते हैं। उस धर्म का पालन करता मैं हूँ। उसी सत्य का गुणगान मैं करता हूँ।
रचयिता - भगवान सिंह हंस
प्रस्तुति - योगेश विकास


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