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Monday, October 18, 2010

एक्ट्रा खुशी की बात है

श्री विश्वमोहन तिवारीजी 
दुर्भाग्य है कि कभी आपसे मिलने का मौका नहीं मिला। मगर आपके लेख को पढ़कर पहले तो लगा कि यह लेख जरूर पंडित सुरेश नीरवजी का होगा मगर जब लेख पर किसी का नाम नहीं देखा तो कौतुहल हुआ। पोस्ट पर फिर आपका नाम देखा जो कि ब्लाग के लिए नया था। फिर नीरवजी ने जो आपके विराट व्यक्तित्व का संक्षिप्त परिटय दिया उससे अंदाज लग गया कि आप कितने गहरे हैं। मैं आपके लेख की प्रशंसा के साथ आपका अपने ब्लाग में हार्दिक स्वागत करती हूं।
डाक्टर प्रेमलता नीलम


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