आदरणीय नीरवजी
आपके व्यंग्य लेख के क्या कहने। बहुत ही धारदार व्यंग्य है जो हम भारतीयों की मानसिकता को पूरी तरह उघाड़ता है। हम सचमुच ही वह ऊंट है जो आज 63 साल बाद भी रस्सियों से ही बंधे हैं। हमें इस सोच को बदलना होगा तभी कुछ श्रेष्ठ हो सकता है। लेख सोचने को मजबूर करता है।
0 हंसजी की रिपोर्टिंग बढ़िया है।
और
0मधुजी ने जो लेख कोट किया है वह सामयिक है।
जयलोकमंगल..
अरविंद पथिक
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