जय लोक मंगल के सभी सदस्यों को मेरा प्रणाम। अभी तक आप सभी से अपने उदगारों को बाँट नहीं पाई इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ। हिंदी टंकण की जानकारी के अभाव की वजह से अपने को लचर महसूस कर रही थी। अब शायद कोशिश रहेगी की आप लोगों से जुडी रहूँ। मुझ जैसी छोटी सी इकाई को इस परिवार में सम्मिलित कर के पंडित सुरेश नीरव जी ने जो मुझ पर कृपा की है मैं उसकी तहेदिल से सदैव आभारी रहूंगी ।
आप लोंगों के आशीर्वाद की कामना रखते हुए मेरी पहली कृति आप सबके सम्मुख:
"ए दिल बता तू किसका है?
किसके लिए धड़कता है ?
किसके सीने में तड़पता है?
बंद हो जाती है जब तेरी धड़कन
कितनी आँखें रुलाता है?
ए दिल बता
तेरा आँखों से क्या नाता है?
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