प्रशांत योगी जी को मेरा सादर प्रणाम
आपके विचार दिल को छू जाते हैं
आज यही हकीकत है कि सभी रिश्ते संवेदना विहीन होते जा रहे हैं
आपने बहुत खूब कहा-
प्रेम गली अति संकरी या में दो ना समाय
जब कोई व्यक्ति प्रेम गली से गुजरना चाहता है तो उसे अपने अहम को त्यागना पड़ता है। अन्यथा वो प्रेम कर ही नही सकता। अहम भाव होने कि स्थिति में वेह केवल स्वयं से प्रेम कर सकता है किसी दूसरे से नहीं। प्रेम गली माता वैष्णो के दरबार कि तरह है जहाँ से गुजरने के लिए इंसान को सिर्फ समर्पण करना है।
आज जो संवेदनहीनता है उसका कारण मैं अगली पंक्तियों में बताने कि कोशिश करती हूँ-
आज -
"भावों के भाव बढ़ गए हैं
भावहीन सर चढ गए हैं
ओर -
भावों के वेद पढ़ें - वो नर
भावहीन नर केवल जड
वास्तव में मेरा मानना है कि जब हम किसी से प्यार करते हैं वो वास्तव में प्यार नहीं होता, वेह केवल प्यार का दावा होता है। प्यार जाता कर हम केवल उस व्यक्ति पर अधिकार प्राप्त करना चाहते हैं।
कुछ पंक्तियाँ इस विषय पर भी कहना चाहूंगी-
अधिकार ने कहा प्यार से -
जब तू किसी को हो जाता है
वो क्यों मुझको भी पाना चाहता है
जो तेरा मेरा नाता है
क्यों प्रेमी समझ नही पाता है
मुझे (अधिकार) जताकर क्यों पगला
तुझको भी खोता जाता है ?
प्रशांत योगी जी को इस विषय को मंच पर लाने के लिए मेरी बधाई।
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