मैं एक रूहानी किताब हूँ ! मुझे पता नहीं मेरा नाम क्या है ! मुझे किसी चांदनी रात में पढना ,.....मस्जिदों-मंदिर की सोच से ऊपर उठकर !...केवल मेरी बे-नजीर खूबसूरती निहारना ! ..किसी पूर्णमासी की रात में ,जब चाँद भी योवन पर हो , भूल जाना मेरे रचनाकार को ,.....केवल मुझे देखना ,अर्ध-निर्लिप्त ,.....और पूछना खुद से ........"क्या मेरे मर-मरी पन्नों पर मजहबों की कम-ज़र्फ़ सोच के सुर्ख छींटे अच्छे लगेंगे ?".............प्रशांत योगी
No comments:
Post a Comment