यह मंच आपका है आप ही इसकी गरिमा को बनाएंगे। किसी भी विवाद के जिम्मेदार भी आप होंगे, हम नहीं। बहरहाल विवाद की नौबत आने ही न दैं। अपने विचारों को ईमानदारी से आप अपने अपनों तक पहुंचाए और मस्त हो जाएं हमारी यही मंगल कामनाएं...
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Thursday, November 25, 2010
प्रेम का कोई मजहब नहीं होता
ताजमहल संगमरमर के पन्नों पर प्रेम की लिखी किताब है। वक्त की आंखों में देखा मुहब्बत का सपना है।और जनाब प्रेम का कोई मजहब नहीं होता। हम इसे सिर्फ अहसास करें,रूह से महसूस करें, यही ताजमहल को जीने का सलीका है।
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