Search This Blog

Monday, November 22, 2010

शब्दिका

जी हाँ में पागल हू
मेरे उपर ईमानदारी के पागलपन का भूत सवार रहता है
मेरी शिरोंओमें देश भक्ति का जज्बा बहता है
जो बैमानी की आगोस में रहते है
कुछ इस तरह के सर फिरे
मुझे पागल कहते है
जी हाँ में पागल हू
शहीदों की उन चिन्ताओ पर
सर रखकर रोने के लिए
जिन्हें पंद्रह अगस्त या छबीस जनवरी को याद नहीं किया जाता है
बड़े-बड़े भास्दो में उनका नाम भी नहीं लिया जाता है.....
जो कुर्सियों की भावनानो में बहते है
यसे अवसरवादी देश भक्ति का जामा पहनने वाले मुझे पागल कहते है
जी हाँ में पागल हू और पागल कर दूना उन्हें जो ठीके पर
रेट का पुल बना रहे है
चारो तरफ से सुखा बाद की भरमार हो
इसकी आड़ में सरकारी राहत खाकर रंग्रेल्या
मन रहे है जिनके कारन न जाने कितनी
आशयो के स्वप्न ढाते है
यसे दोगले ही मुझे पागल कहते है
जी हाँ में पागल हू उन मासूमो के
आंसू पूछने के लिए जिनके माँ बाप
आंतकवादियों के शिकार हो गये है
जिनके भविष आधेरो की सुरंग में खो गए है
वो ना जाने रोज कितने अपमान को सहते है
में उनके लिए जियोंगा
में उनके लिए मरूँगा
इसलिए में बहुत खुश हू की लोग मुझे पागल कहते है
प्रकाश प्रलय कटनी

No comments: