डाक्टर अरविंद चतुर्वेदीजी,
पालागन... 
इसीलिए कह रहा हूं कि डोंट वरी Be Happy
श्रीमान हीरालाल पांडे ने जो पोस्ट नेहरू-गांधी वंश पर भेजी है वो हैरतअंगेज है। लेखक ने तथ्यों को जुटाने में तमाम सूचनाओं के खंगालने में जो मशक्कत और कवायद की है वह यकीनन मेहनत की मांग करती है। तथ्यों की प्रामाणिकता को अगर और पारदर्शी बनाया जाता तो लेख की प्रामाणिकता में इजाफा ही होता। मुझे उम्मीद है कि वो मेरी बात पर गौर करेंगे। और अगली बार तमाम प्रामाणिक जानकारियों से लैस होकर मैदान में उतरेंगे। हमें इंतजार रहेगा।चलो सुहाना भरम तो टूटा,ये आज जाना फेमिली क्या है।
तीसरी पोस्ट प्रशांत योगीजी की पढ़ी। उन्होंने नए और पुराने के बीच चले आ रहे विवाद को बड़े ढंग से व्याख्यायित किया है। दरअसल हम जब कभी किसी तथ्य को समग्रता में नहीं देखते हैं तभी विरोधाभासी दावे सामने आते हैं। यह हमारी विखंडित चेतना की पैदाइश होते हैं। जैसे कि एक हाथी को अंधे के सर्वेक्षण दल द्वारा खोजना। किसी के लिए हाथी रस्सी है तो किसी के लिए खंभा। तो किसी के लिए पहाड़। जिसने हाथी को समग्रता में देख लिया तो उसके निष्कर्ष इन सबसे भिन्न होंगे। हम जब समय को काल खंड में देखेंगे तो अतीत-वर्तमान-भविष्य के टुकड़ों में ही उसे देख पाते हैं। अंधों द्वारा हाथी को देखने की तरह। समय को हम अपनी सुविधा से बांटते हैं। वरना समय का विभाजन संभव है क्या। समय तो शाश्वत है। Always है। वहां क्या नया।क्या पुराना। विखंडित मेधा के लिए आधा गिसास जल आधा भरा है तो आधा खाली भी। खाली और भरेपन का जो सापेक्ष बिंदु है हमें उसे पहचानना होगा। तभी हम समय मे रहकर भी समय के पार हो पाएंगे। समय में रहकर समय से मुक्त होना ही शाश्वतता में होना है। यही कैवल्य है। यही मोक्ष है। यही निर्वाण है। स्वर्ग और नर्क के अतिरिक्त यही समय का तीसरा आयाम है। जहां नया-पुराना कुछ नहीं। ईसा ने इसे ही बियांड द टाइम कहा है। मेरे प्रणाम...
पंडित सुरेश नीरव
No comments:
Post a Comment