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Thursday, November 18, 2010

आज का चिट्ठा


संवेदनाएं जीवन का आधार हैं...
संवेदनाएं भी आज संवेदनाहीन हो रही हैं। आदमी यंत्र बन गया है। एक रोबोट। जिसके लिए  उचित-अनुचित का कोई अर्थ नहीं रह गया है। प्रेम जो लाशों के बीच एक मुर्दा समझौता है जिसकी बुनियाद तलाक के कागजों पर टिकी होती है। प्रेम करनेवाला भी झूठ बोल रहा है और जो प्रेमिका होने का नाटक रच रही है,वह भी धोखा ही जी रही है. धोखा.भी धोखे को ही धोखा दे रहा है। यही संसार का चलन है। श्री प्रशात योगीजी की पोस्ट सोचने के कई आयाम  प्रशस्त करती है। और आज के यथार्थ से रूबरू भी कराती है। हमें सोचना होगा कि जीवन के कारण संवेदनाएं हैं या संवेदनाओं के कारण जीवन है। या दोनों ही अन्योनाश्रित हैं।

 श्रीभगवानसिंह हंस ने काल के गाल में अकाल लेख की बड़ी सारगर्भित विवेचना की है। और सिद्ध कर दिया है कि उनकी लेखनी महाकाव्य की जननी है। उनके लिए मुझे लगता है कि जो भक्तिभावना उनमें है वह इतनी सांद्र और गाढ़ी है जहां भक्त ही भगवान हो जाता है और भगवान एक भक्त। हंसजी स्वयं भगवान हैं। और जब भगवान भक्त हो जाए तो यह भगवत्ता का चरम विकास है।यही वह भगवत्ता है, जो उनमे खिली है।
कविता की चोरी
श्री अशोक शर्मा की कविता बुफे की दावत को किसी कवि ने चुराकर अपने नाम से छपवा लिया है. हम जानते हैं कि बुफे की दावत अशोक शर्मा की बेहद लोकप्रिय कविता है जिसेकि वे कई वर्षों से मंचों पर सुनाते आ रहे हैं. साहित्य में इसतरह की चोरी निश्चितरूप से निंदनीय है। हम इस कुकृत्य की खुलकरभर्त्सना करते हैं। साथ हीअशोक शर्मा से यह भी अपेक्षा करते हैं कि ङन्हें इस चौर्य वारदात पर कानूनी कार्वाई भी करनी चाहिए हम सभी लेखक उनके साथ हैं। यह तो हैरत की बात है कु वे बुपे की जावत में जीमते ही रह गए और कोई उनकी कविता ही ले उड़ा। और उसपर सीनाजोरी ये कि उसे अपने नाम से छपवा भी ली। अशोक शर्मा संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं।
आदरणीय श्री विश्वमोहन तिवारीजी की कविता अमेरिका का समुद्री सरकस लाजवाब कविता है। बड़ी मछली छोटी मछली को खाती है,इस मुहावरेदारी का नए प्रतीकों और बिंबों के माध्यम से आपने बढ़िया निर्वाह किया है।कविता में यह बिंब योजना और अर्थ-छवियां बिल्कुल अभिनव हैं। और यही िस कविता का वैशिष्ट्य भी। आर्ज बस इतना ही...
पंडित सुरेश नीरव


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